टीकमगढ़ न्यूज़ | टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव निवासी तुलसीराम 14 साल की कठिन राम पथ यात्रा के बाद अपने गांव लौटे। झिर की बगिया हनुमान मंदिर में उन्होंने पूजा-अर्चना की, जहां साधु-संतों और ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया।
रामचरितमानस से गहरे प्रभावित टीकमगढ़ के तुलसीराम ने 15 मई 2011 को घर-परिवार और सांसारिक जीवन त्यागकर राम के पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया। हाई स्कूल के बाद विवाह और दो संतानों के बावजूद उनका मन सांसारिकता में नहीं लगा। उन्होंने खुद को 14 वर्षों के वनवास के लिए समर्पित कर दिया, और परिवार ने उन्हें सहमति दे दी।
तुलसीराम की पदयात्रा की शुरुआत अयोध्या से हुई। अगले 14 वर्षों में उन्होंने लगभग 30,000 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा पूरी की। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों के सैकड़ों तीर्थ स्थलों और वन क्षेत्रों में भ्रमण किया।
वनवास के समय उन्होंने दुर्गम जंगलों में साधुओं के साथ रहकर जीवन बिताया। वहां उन्हें संतों ने "वनवासी महाराज" नाम दिया। कई बार कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन रास्ते में श्रद्धालुओं और ग्रामीणों से उन्हें खूब स्नेह भी मिला।
अपनी यात्रा के अंतिम चरण में तुलसीराम 10 मई को अयोध्या पहुंचे और सरयू नदी में स्नान कर पुण्य लाभ लिया। 15 मई को उन्होंने ओरछा स्थित राम राजा सरकार के दर्शन किए और अंत में अपने गांव बड़ागांव लौटे। गांव पहुंचने पर उनका आत्मीय स्वागत हुआ और उन्होंने झिर की बगिया हनुमान मंदिर में विशेष पूजा की।
तुलसीराम की इस यात्रा ने न सिर्फ आध्यात्मिक श्रद्धालुओं को प्रेरित किया बल्कि यह भी दिखाया कि रामभक्ति के लिए त्याग, साधना और संकल्प कितना महत्वपूर्ण होता है।
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(अनिल श्रीवास की रिपोर्ट) Bundelivarta.com