झांसी के चर्चित हत्याकांड में चार साल तक चले ट्रायल के बाद आखिरकार कोर्ट ने दोषी मंथन सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुना दी। इस फैसले के बाद मृतक हुकमेंद्र सिंह गुर्जर और कृतिका त्रिवेदी के परिवार ने संतोष जताया, हालांकि उनका कहना था कि अगर कोर्ट फांसी की सजा सुनाता, तो और भी अधिक न्याय महसूस होता।
क्या था मामला?
19 फरवरी 2021 को बुंदेलखंड महाविद्यालय (BKD) के एमए मनोविज्ञान के छात्र हुकमेंद्र सिंह को उसी की क्लास के छात्र मंथन सिंह सेंगर ने सरेआम गोली मार दी थी। इसके बाद उसने ब्लैकबोर्ड पर चॉक से दिल बनाकर "फिनिश" लिखा और वहां से निकलकर गोंदू कंपाउंड पहुंचा। वहां उसने एमए इतिहास की छात्रा कृतिका त्रिवेदी को भी गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।
हत्या के पीछे एकतरफा प्यार!
पुलिस जांच में सामने आया कि मंथन, कृतिका से एकतरफा प्यार करता था। लेकिन कृतिका और हुकमेंद्र के बीच अच्छी दोस्ती थी, जो मंथन को नागवार गुजरी। इसी गुस्से में उसने दोनों की हत्या की साजिश रची और वारदात को अंजाम दिया।
बारूद के कणों से फंसा कातिल
पुलिस ने मौके से ही मंथन को पिस्टल के साथ गिरफ्तार कर लिया था। FSL टीम ने उसके हाथों से बारूद के कणों के नमूने लिए, जो जांच में पॉजिटिव पाए गए। कोर्ट में यह वैज्ञानिक सबूत सबसे अहम साबित हुआ।
4 साल की कानूनी लड़ाई, 16 गवाहों ने किया खुलासा
इस केस में 4 साल तक ट्रायल चला और कुल 16 गवाहों ने कोर्ट में आरोपी के खिलाफ गवाही दी। इनमें हुकमेंद्र के चाचा संजय गुर्जर, कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी, उनकी दादी संतोष त्रिवेदी और कॉलेज की छात्रा सौम्या प्रमुख गवाह थे।
पीड़ित परिवार का दर्द
हुकमेंद्र के चाचा संजय गुर्जर ने कहा, "मंथन कोर्ट में शहंशाहों की तरह खड़ा रहता था, कभी चेहरे पर शिकन नहीं आई। ये पूरी तरह से सोची-समझी साजिश थी। अगर फांसी की सजा होती, तो ज्यादा अच्छा होता, लेकिन हम इस फैसले का स्वागत करते हैं।"
वहीं, कृतिका के पिता सुजीत त्रिवेदी ने कहा, "ये समाज का दुश्मन है। हम अपना सब कुछ खो चुके हैं, लेकिन अब यह हत्यारा कभी जेल से बाहर नहीं आना चाहिए।"
अदालत का फैसला
एससी-एसटी एक्ट कोर्ट के विशेष न्यायाधीश धीरेंद्र कुमार (तृतीय) ने मंथन सिंह को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
रोहित राजवैद्य की रिपोर्ट | Bundelivarta.com