झांसी न्यूज़। झांसी में सरकारी अफसरों की लापरवाही की शिकार हुईं 72 वर्षीय बुजुर्ग महिला सुम्मा देवी पिछले 14 महीनों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं, लेकिन उनकी एक ही गुहार—मैं मरी नहीं, जिंदा हूं—को कोई सुनने वाला नहीं है।
बड़ागांव विकासखंड के बिरगुवां गांव की रहने वालीं सुम्मा पत्नी चुखर बीते 12 वर्षों से वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत हर माह 1000 रुपए की सहायता राशि पा रही थीं। लेकिन बीते एक साल से पेंशन आनी बंद हो गई। जब कारण जानना चाहा गया, तो खुलासा हुआ कि कागजों में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है।
बिना जांच के कर दी 'मौत', पेंशन भी रोकी गई
सुम्मा की पेंशन क्यों बंद हुई, यह जानने के लिए उन्होंने अपने भतीजे जगदीश प्रसाद को विकास खंड कार्यालय भेजा। अधिकारियों ने पहले तो बात टाल दी, लेकिन जब जगदीश विकास भवन पहुंचे तो पता चला कि बुआ तो 14 महीने पहले ही मर चुकी हैं, यही जवाब मिला।
जगदीश ने जब समाज कल्याण अधिकारी से बात की तो उन्होंने भी सुम्मा को पहचानने और जीवित मानने से इनकार कर दिया। अफसरों ने सारा ठीकरा पंचायत अधिकारी पर डाल दिया और उन्हें वहीं जाने को कह दिया।
पंचायत अधिकारी बोले- गलती नहीं मानी
पंचायत अधिकारी के पास पहुंचने पर जगदीश ने जब उनसे सवाल किया कि आपने बिना पुष्टि के सुम्मा को मृत कैसे घोषित कर दिया, तो उन्होंने गलती मानने से इनकार कर दिया।
बुजुर्ग की आंखें कमजोर, जीने का सहारा भी छिन गया
सुम्मा न ठीक से देख सकती हैं और न तेज चल सकती हैं। उनका कहना है कि पेंशन से पेट भरता था, अब वह भी बंद हो गई। गांववालों के सहारे जी रही हूं, अफसरों को क्या फर्क पड़ता है, लगता है वो मेरी मौत का इंतजार कर रहे हैं।
सुबूत लेकर पहुंचीं, फिर भी नहीं सुना
शनिवार को सुम्मा आधार कार्ड, जनसुनवाई पोर्टल की कॉपी और बैंक पासबुक लेकर तहसील दिवस में अफसरों के सामने पहुंचीं। भतीजे जगदीश के मुताबिक, एक अधिकारी ने केवल इतना कहा—सोमवार या मंगलवार को विकास भवन आ जाना, देखते हैं।
सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में, ज़मीनी हकीकत कुछ और
यह मामला सिर्फ एक बुजुर्ग महिला का नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था की संवेदनहीनता और अफसरशाही की उदासीनता का आइना है। सुम्मा जैसी न जाने कितनी जिंदगियां कागजों में 'मृत' घोषित कर दी जाती हैं, और असल जिंदगी में वह अपनों और सरकार के भरोसे जूझती रहती हैं।
सरकार कब जागेगी?
अब सवाल यह है कि क्या सुम्मा को न्याय मिलेगा? क्या उनके खाते में फिर से पेंशन पहुंचेगी? या फिर ये मामला भी फाइलों के बोझ में दबा रह जाएगा?
(रोहित राजवैद्य की रिपोर्ट) Bundelivarta.com