झांसी न्यूज़। 25 अप्रैल को रिलीज़ हुई ऐतिहासिक फिल्म फुले अब तक क्रांति भूमि झांसी के किसी भी सिनेमाघर में नहीं दिखाई गई है। इस स्थिति पर सवाल उठाते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और जागरूक नागरिकों ने झांसी के सांसद डॉ. अनुराग शर्मा, नगर विधायक रवि शर्मा, शिक्षक विधायक डॉ. बाबूलाल तिवारी, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री हरगोविंद कुशवाहा, महापौर बिहारीलाल आर्य और बलराम भारती — प्रदेश अध्यक्ष, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), खेल प्रकोष्ठ — से अनुरोध किया है कि वे इस फिल्म के शो स्कूलों, कॉलेजों और सिनेमाघरों में सुनिश्चित करवाएं।
फुले फिल्म, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है। यह फिल्म हिन्दू समाज की जातिगत विषमता, स्त्री शिक्षा, किसान अधिकार और दलित सशक्तिकरण जैसे विषयों को गहराई से प्रस्तुत करती है। मांग की जा रही है कि जैसे 'द केरला स्टोरी' को झांसी में समाजसेवियों ने अपने खर्च पर दिखाया था, वैसे ही फुले फिल्म को भी छात्रों और आम नागरिकों तक पहुँचाया जाए।
वक्ताओं ने कहा कि जनप्रतिनिधि किसी एक जाति या धर्म के नहीं होते, बल्कि सबका प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास को साकार करने के लिए 'फुले' जैसी प्रेरणादायक फिल्मों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
महात्मा ज्योतिबा फुले ने हिन्दू समाज की चारों जातियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - के बीच सामाजिक समानता लाने का प्रयास किया। उन्होंने दलित और पिछड़े वर्गों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया और पंडित, किसान, दलित, मुस्लिम सभी समुदायों की बेटियों को शिक्षित किया। वहीं सावित्रीबाई फुले ने देश का पहला बालिका विद्यालय खोलकर महिला शिक्षा की नींव रखी। वे स्त्रियों के अधिकार, विधवा विवाह, छुआछूत और लैंगिक समानता की आवाज बनीं।
फिल्म समीक्षक पंकज शुक्ल के अनुसार, फुले को अभी भी देश के अधिकांश स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता। बहुत से लोगों को यह तक नहीं पता कि महात्मा की उपाधि सबसे पहले फुले को मिली थी, गांधी से पहले।
यह भी मांग की गई है कि फुले फिल्म को टैक्स फ्री किया जाए और फुले दंपति को हर शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। उनकी मूर्तियाँ सभी स्कूल-कॉलेजों में लगाई जाएँ ताकि छात्र-छात्राएँ उनके विचारों से प्रेरणा लेकर समाज में बदलाव ला सकें।
बताया गया कि यह फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज़ होनी थी, लेकिन कुछ संगठनों ने सेंसर बोर्ड से फिल्म के महत्वपूर्ण दृश्य हटवाकर इसकी रिलीज़ रोक दी। सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस विरोध से हिन्दू धर्म की उदार और सुधारवादी परंपरा को नुकसान हुआ है।
फुले केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि वह क्रांति है जो भारत को फिर से विश्वगुरू बना सकती है। यह देश की 90% जनसंख्या — किसान, दलित, युवा और महिला — के सशक्तिकरण की राह दिखाती है।
(रोहित राजवैद्य की रिपोर्ट) Bundelivarta.com