राष्ट्रीय संगोष्ठी में बुंदेलखंड की ज्ञान परंपरा पर हुई व्यापक चर्चा: निबंध प्रतियोगिता में राम द्विवेदी रहे प्रथम, राज्य मंत्री ने किया सम्मानित

Journalist Bharat Namdev
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राष्ट्रीय संगोष्ठी में बुंदेलखंड की ज्ञान परंपरा पर हुई व्यापक चर्चा: निबंध प्रतियोगिता में राम द्विवेदी रहे प्रथम, राज्य मंत्री ने किया सम्मानित



झांसी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 139वीं जयंती के उपलक्ष्य में हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य समापन हुआ। समापन सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने करते हुए कहा कि साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि मनुष्य को जीवन जीने की कला भी सिखाता है। उन्होंने कहा कि साहित्य में जीवन के अनुभव समाहित होते हैं, जो व्यक्ति के व्यवहार और दृष्टिकोण को परिष्कृत करते हैं।



संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री हरगोविंद कुशवाहा ने कहा कि बुंदेलखंड की धरती न केवल शौर्यगाथाओं की जननी रही है, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने आल्हा-ऊदल की गाथाओं और छत्रसाल के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि ये परंपराएं आज भी प्रेरणा देती हैं।


इसी अवसर पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में बीए ऑनर्स हिंदी तृतीय वर्ष के छात्र राम द्विवेदी ने प्रथम स्थान प्राप्त कर विश्वविद्यालय को गौरवान्वित किया। मुख्य अतिथि हरगोविंद कुशवाहा ने प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार भेंट कर राम द्विवेदी को सम्मानित किया। छात्र के उत्कृष्ट लेखन और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की सभी ने सराहना की।


बुंदेलखंड की लोक परंपरा में निहित है भारतीय ज्ञान का मूल स्वरूप



संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि बुंदेलखंड की सांस्कृतिक परंपरा प्राचीन काल से ही प्रगतिशील रही है। उन्होंने बताया कि महाभारत जैसे ग्रंथों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। विशिष्ट वक्ता प्रो. सिद्धार्थ शंकर मिश्र ने भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐतिहासिक यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह परंपरा न केवल शास्त्र आधारित है, बल्कि लोक चेतना से भी जुड़ी हुई है।


डॉ. बलजीत श्रीवास्तव ने बुंदेली लोक साहित्य में निहित ज्ञान परंपरा को रेखांकित करते हुए कहा कि आल्हा, नटवरी और लोकगीतों में प्रकृति संरक्षण, नारी चेतना और प्रेम जैसे तत्व विद्यमान हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी ने किया जबकि स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष प्रो. मुन्ना तिवारी ने तथा आभार ज्ञापन प्रो. पुनीत बिसारिया ने किया।


इस अवसर पर डॉ. अचला पाण्डेय, श्री नवीन चंद पटेल, डॉ. प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ. सुधा दीक्षित, डॉ. द्युति मालिनी सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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